इंदौर। नगर निगम में 110 इंजीनियर सहित 200 अधिकारियों पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। बड़े प्रोजेक्ट में लाखों रुपए खर्च कर कंसलटेंट नियुक्त होते हैं, लेकिन फिर भी शहर छ:- सात इंच बारिश में डूब रहा है। अब लोग यह कहने लगे हैं कि इधर-उधर की बात मत कर यह बता शहर कैसे डूबा… ?

विशेष:इंदौर में कल शाम से अभी तक 10 इंच बारिश हो चुकी है।

देखा जाए तो अमृत एवं जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट व नाला टेपिंग में एक मुश्त 1500 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं, तो स्टार्म वाटर लाइन पर हर साल 15 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं, लेकिन स्थिति नियंत्रण के बाहर है। बीआरटीएस पर करीब 280 करोड़ रुपए में स्टार्म वाटर लाइन डाली, लेकिन हर साल पानी भर जाता है। अन्य सड़कों के भी यही हाल है। औसतन 70 हजार वेतन, गाड़ी ड्रायवर अलग, आइएएस व राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को छोड़ दें तो भी 200 अधिकारियों की टीम है। सीनियर इंजीनियर का वेतन करीब 1 लाख 10 हजार तो जूनियर का 80 हजार है। औसतन एक व्यक्ति का वेतन 70 हजार रुपए है

जिससे साफ है कि करीब डेढ करोड़े तो वेतन भुगतान होता है। इसके अलावा, गाड़ी, ड्रायवर व अन्य स्टाफ अलग है। इतना बड़ा खर्च होने के बाद भी निगम का अमला शहर के डूबने जैसी स्थिति में सुधार नहीं कर पा रहा है। शहर डूब रहा है तो जिम्मेदार जनकार्यवि भाग, ड्रेनेज सेक्शन पर सवाल उठना लाजिमी है!

इंदौर हुआ पानी पानी :21 घंटे में सात इंच बारिश

(विधायक संजय शुक्ला बस्तियों में )

दरअसल, थोड़ी सी बारिश में ही शहर डूब रहा है। निचली बस्तियां जलमग्न हो रही है ! बीआरटीएस पर एमआर-9 चौराहे के पास, स्मार्ट सिटी की पहली सड़क पर मालगंज चौराहे के पास, विजय नगर व सयाजी चौराहे के पास, एमआर- 11 पर राजीव गांधी चौराहे के पास एरोड्रम रोड पर रामचंद्र नगर, विंध्याचल नगर जैसे पाश कालोनियां, के साथ  खातीपुरा, टापू नगरऔर अनेक इलाके पानी-पानी हो रहे हैं तो इसके लिए किसे जवाबदार ठहराया जाए ?