आज जब युवा पीढ़ी वैश्वीकरण व सोशल मीडिया के दौर में अपनी सांस्कृतिक विरासत से मुंह मोड़ रही है, श्रीनगर गढ़वाल के तीन डोभाल भाइयों ने डेढ़ दशक पहले स्थापित बैंड ‘पांडवास’ ने नई लीक स्थापित की। उन्होंने परंपरागत लोकगीतों व संगीत को फ्यूजन के जरिए नई पीढ़ी की आकांक्षाओं के अनुरूप ढाला है। उनके कंसर्ट और लाइव कार्यक्रमों की धूम का ये आलम है कि उन्हें भारत के नेशनल गेम जैसे आयोजनों में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। अब उन्हें यूनेस्को ने सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण के प्रयासों के चलते, दिल्ली में होने वाले एक राष्ट्रीय लोक संगीत कार्यक्रम में आमंत्रित किया है।
यह उत्तराखंडी बैंड ‘धवाड़ी पांडवास’ कंसर्ट के सिलसिले में चंडीगढ़ में उत्तराखंड मूल के संगीत प्रेमियों से रूबरू हुआ। पंद्रह सदस्यीय इस बैंड के सूत्रधार व संस्थापक ईशान डोभाल, क्रिएटिव हेड कुणाल व कॉस्ट्यूम डिजाइनर सलिल तीनों भाई हैं। इसके अलावा लोकगायक अनिरुद्ध, राकेश, बांसुरी वादक अंशुल, दीपक,गिटार वादक नवदीप,तबला वादक ऋषि व कुनाल वाद्य यंत्रों के उस्ताद हैं। वहीं तीन महिला कलाकार गायक ख्याति, ड्रम वादक श्रेष्ठा व शिवानी गायन टीम का हिस्सा हैं।
टीम के सह-संस्थापक सलिल बताते हैं कि नई पीढ़ी के परंपरागत लोक संगीत से मोहभंग होते दौर में हमने फ्यूजन संगीत के जरिये धुनों को पाश्चात्य तेवर देने का प्रयास किया है। हमारी विशिष्ट पोशाक उत्तराखंड के जौनसार इलाके में पहने जाने वाली विशेष वेशभूषा है, जो युवाओं को आकर्षित करती है। हम तीनों भाइयों ने संगीत की शिक्षा ली है और सांस्कृतिक परंपरा को समृद्ध करने का प्रयास किया है। वे कहते हैं कि देश के कला प्रेमी उत्तराखंडियों को हमें सकारात्मक प्रतिसाद मिल रहा है।
निस्संदेह, किसी भी प्रदेश की पहचान वहां के लोक गीत और संगीत होते है। युवा पीढ़ी इनसे विमुख होती जा रही है। दरअसल, जेन जेड पश्चिमी तड़क-भड़क की गीत-संगीत वाली संस्कृति की दीवानी होती जा रही है। जिसके चलते लोक संगीत व गीतों के श्रोताओं का दायरा सिमटता जा रहा है। इस संकट को महसूस करते हुए पांडवास बैंड समूह ने उत्तराखंड के परंपरागत वाद्य यंत्र, परिधान के जरिये लोक संगीत को फ्यूजन स्वरूप देकर युवाओं को अपनी जड़ों के साथ जोड़ने का प्रयास किया। केदार घाटी से निकलकर देश के महानगरों में आयोजित होने वाले सांस्कृति उत्सवों में पांडवास की प्रस्तुति को हाथों हाथ लिया जा रहा है।
वर्ष 2010 में ईशान, कुणाल और सलिल तीन भाइयों ने मिलकर ‘पांडवास’ बैंड का गठन किया। कलात्मक दृष्टि कलाप्रेमी पिता से मिली है। इन भाइयों ने संगीत विषयक शिक्षा संस्थागत रूप से ली है। इस बाबत ईशान डोभाल बताते है कि उनके बैंड का मकसद उत्तराखंड की युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों की तरफ लेकर जाना है। वे अभिभूत होते हैं जब उनके बैंड के परंपरागत परिधान, लोक गीत और वाद्य यंत्र युवाओं को सम्मोहित करते है। ग्रुप के मेंबर कुणाल का कहना है कि उन्होंने उत्तराखंड की देश विदेश में बैठी युवा पीढ़ी की अपनी लोक संस्कृति से जोड़ने का प्रयास किया है। डोभाल बंधुओं ने युवा पीढ़ी के रूझान और बाजारी प्रवृत्तियों को समझा। अब तो जो परंपरागत गीत संगीत पहाड़ों की वादियों तक ही सीमित था उसे महानगरों के उतराखंडियों की पसंद बनाने का सार्थक प्रयास डोभाल बंधुओं ने किया है।
बैंड के अधिकांश सदस्य संगीत का विधिवत प्रशिक्षण लिए हुए है। यही नहीं बैंड के प्रमुख ईशान, कुणाल और सलिल को थिएटर की समझ भी है। प्रस्तुति के समय साउंड, ड्रेस, लाइट आदि पर उनका खास ध्यान रहता है। लोकसंस्कृति से जुड़े परिधान दर्शकों व कला प्रेमियों को आकर्षित भी करते है। डोभाल बंधु मानते हैं कि यदि अच्छे श्रोता और दर्शक मिलते हैं तो उन्हें अपने बैंड के सदस्यों के साथ प्रस्तुति देने में आनन्द की अनुभूति होती है। संगीत अपनी जड़ों से जोड़ता है। वहीं इस बैंड की वोकल आर्टिस्ट शिवानी, ख्याति और श्रुति लोक गीत संगीत को अपनी जड़ों से जोड़ने का सार्थक माध्यम मानती हैं।