पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता विनय झैलावत का कॉलम

सर्वोच्च न्यायालय ने अभी हाल ही में अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के संविधान के ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया है। इस काम को करने के लिए एवं संविधान को अपनाने के लिए, संघ को चार सप्ताह के भीतर जल्द से जल्द एक आम सभा की बैठक बुलाने का निर्देश दिए है। न्यायमूर्ति पामिदिघंतम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा सन 2017 में दिए गए एक फैसले के खिलाफ फुटबॉल महासंघ की याचिका पर फैसला सुनाया। इसमें उच्च न्यायालय ने खेल कार्यकर्ता और वकील राहुल मेहरा की याचिका के बाद तत्कालीन अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल सहित फुटबॉल महासंघ के पदाधिकारियों के चुनाव को रद्द कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने खेल के महत्व को सौहार्दपूर्णता के संवैधानिक आदर्श से जोड़ा। न्यायालय ने कहा कि कानून के माध्यम से लागू किए जा सकने वाले अधिकारों के विपरीत, सौहार्दपूर्णता न्यायिक आदेश अधिकारों के लिए उत्तरदायी नहीं है। सौहार्दपूर्ण को, एकता, विश्वास और साझा प्रयासों के जीवित अनुभव के माध्यम से पोषित किया जाना चाहिए। भारत में राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और यहां तक कि मोहल्ला खेल एक कर्म भूमि के रूप में कार्य करते हैं। यहां गठबंधन और सामूहिक उद्देश्य साझा रूप लेते हैं। ये व्यक्तिगत और विविध सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की साझा खोज के तहत एक साथ लाये जाते हैं। यह भाईचारे के संवैधानिक मूल्य को मूर्त रूप देते हैं, जहां व्यक्तिगत और सामूहिक आकांक्षाएं एकजुट होने का रास्ता खोजती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय फुटबॉल महासंघ के प्रबंधन और राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल टूर्नामेंट और लीग के संचालन की निगरानी कर रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसे संविधान के ड्राफ्ट को मंजूरी दी, जिसमें कुछ संशोधनों के साथ विभिन्न हितधारकों के सुझाव शामिल किए गए थे। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा कि न्यायालय ने ड्राफ्ट के सभी प्रावधानों की जांच की है और लगभग सभी खंडों को मंजूरी दी है। न्यायालय ने यह भी उम्मीद व्यक्त की कि नया संविधान भारतीय फुटबॉल में संस्थागत बदलाव लाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमें दृढ़ आषा है कि एक बार अपनाए जाने के बाद संविधान भारतीय फुटबॉल की एक नई शुरूआत करेगा और खेल को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाएगा। फुटबॉल महासंघ के वर्तमान पदाधिकारियों के चुनाव को अंतिम मानते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उनके कार्यकाल का केवल एक साल बचा है। इसे बाधित करने का कोई मतलब नहीं है। केवल एक साल बचा होने से प्रतियोगिता अनावश्यक है। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा कि इसे बीच में खत्म का कोई मतलब नहीं है।
फैसले के बाद, न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने टिप्पणी की कि ‘‘हमें उम्मीद है कि इससे फुटबॉल की दुनिया में वास्तविक बदलाव आएगा क्योंकि संस्थागतकरण होने जा रहा है। खेलों का प्रभाव केवल खेल नहीं है। देश और हमारे मानस पर इस खेल का प्रभाव है। इसलिए हमने इस बात पर ध्यान दिया है कि खेल में सौहार्दपूर्ण इतनी महत्वपूर्ण क्यों हैं ? ये ऐसे साधन और तरीके हैं जिनके द्वारा सौहार्दपूर्ण के अन्य सिद्धांतों को एक साथ लाया जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह पाया था कि चुनावों ने राष्ट्रीय खेल संहिता का उल्लंघन किया था। उसने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी को प्रशासक नियुक्त किया। कुरैशी को सदस्यता विवादों को हल करना था तथा एक नई चुनावी सूची तैयार करनी थी। खेल संहिता के अनुपालन में चुनाव कराना था। यह भी सुनिश्चित करना था कि फुटबॉल महासंघ संविधान को चुनाव के एक नए दौर से पहले संहिता के अनुरूप संशोधित किया जाए।

न्याय और कानून: कर्मचारियों और नियोक्ताओं के पक्ष में अदालत का फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ अपील प्रस्तुत की गई। जब मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया तो सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावों को सुविधाजनक बनाने और एक नया संविधान तैयार करने के लिए प्रशासकों की तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। संविधान के मसौदे को हितधारकों को टिप्पणियों, आपत्तियों और सुझावों के लिए प्रसारित किया गया। मई 2023 में, अदालत ने पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव को फीफा, भारतीय ओलंपिक संघ, युवा मामले और खेल मंत्रालय, राज्य संघों, राहुल मेहरा, फुटबॉल महासंघ और फुटबॉल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड (एफएसडीएल) सहित विभिन्न हितधारकों से प्राप्त ड्राफ्ट और इनपुट पर विचार करने के लिए नियुक्त किया, जो निजी फुटबॉल फ्रेंचाइजी चलाते हैं। न्यायमूर्ति राव को सभी हितधारकों को सुनने के बाद एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था।
जब प्रक्रिया चल रही थी, तब अदालत ने संविधान को अंतिम रूप दिए जाने तक फुटबॉल महासंघ पर किसी भी बाध्यकारी अनुबंध में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस बीच, राष्ट्रीय खेल प्रशासन अधिनियम, 2025 लागू किया गया। इससे राष्ट्रीय खेल निकायों के लिए नई आवष्यकताएं पैदा हुई। इसी समय, फुटबॉल महासंघ और उसके वाणिज्यिक भागीदार एफएसडीएल इंडियन सुपर लीग के आयोजन की शर्तों पर सहमत होने में असमर्थ थे। 2 सितंबर, 2025 को, 2025-26 के करीब आने और इंडियन सुपर लीग पर अनिश्चितता के साथ, सर्वोच्च न्यायालय ने फुटबॉल महासंघ और फुटबॉल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और फुटबॉल महासंघ को निविदा जारी करने की अनुमति देने तक प्रतिबंध हटा दिया गया।

कानून और न्याय: राज्यपाल क्या न्यायाधीश की तरह काम कर सकते हैं?
उच्चतम न्यायालय ने फुटबॉल महासंघ को सुपर कप और अन्य प्रतियोगिताओं सहित फुटबॉल प्रतियोगिताओं को समय पर शुरू करने के लिए उपाय करने और इंडियन सुपर लीग के लिए अपने वाणिज्यिक भागीदार का चयन करने के लिए एक पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया के लिए निविदाएं जारी करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति राव को यह सुनिश्चित करने का भी काम सौंपा गया है कि लीग के संचालन के लिए एक सक्षम और प्रतिष्ठित फर्म को वाणिज्यिक भागीदार के रूप में नियुक्त किया जाए। न्यायमित्र पूर्व न्यायमूर्ति श्री राव ने न्यायालय के समक्ष एक तथ्य भी प्रस्तुत किया कि न्यायालय द्वारा जांचा गया संविधान का ड्राफ्ट काफी हद तक नए अधिनियम के अनुरूप ही है। लेकिन इस पर कुछ वकीलों ने स्वायत्तता के बारे में चिंता भी व्यक्त की है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह संविधान के मसौदे पर अपने फैसले को अंतिम रूप देने से पहले उनकी सभी दलीलों पर विचार करेगी।