इंदौर। भू माफियाओं को लेकर आज हुई सुनवाई के बाद अब 26 सितम्बर को रितेश अजमेरा, चिराग शाह, हैप्पी धवन, को लेकर उच्च न्यायालय सुनवाई के बाद फैसला देगी। इधर भूखण्ड पीडितों ने न्याय के लिए लगातार कमेटी के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत किया। दूसरी ओर एक ओर निर्णय में प्रदीप अग्रवाल द्वारा जमीन सरेंडर कराए जाने के बाद भूखण्ड दिए जाने से इनकार करते हुए लगाई गई याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। प्रदीप अग्रवाल ने उच्च न्यायालय में कलेक्टर के साथ तहसीलदार और अन्य पर इस मामले में प्रकरण दायर किया।

उच्च न्यायालय द्वारा बनाई गई कमेटी ने शुक्रवार को लिफाफे में बंद कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है।

सूत्रों के अनुसार रिपोर्टमें बताया जा रहा है कि रितेश अजमेरा के 60 भूखण्डों का निराकरण किए जाने के अलावा हैप्पी धवन के मामलों को लेकर जानकारी दी गई है कि डायरियों पर उगाए पैसे देने को तैयार नहीं है। चिराग शाह को लेकर भी रिपोर्ट में कहा गया है कि वे सुप्रीम कोर्ट की स्टेट्स रिपोर्ट पालन नहीं कर रहे है, जिससे उन्हें 23 भूखण्ड कालिंदी गोल्ड में देने हैं। चिराग शाह के वकील का कहना है कि वे इसके लिए अपना पक्ष दे चुके हैं। वहीं हैप्पी धवन ने डायरियों पर 10 करोड़ से ज्यादा राशि उगा रखी है और वे पहले डायरियों पर खुद के फर्जी हस्ताक्षर बता रहे थे परन्तु हस्ताक्षर विशेषज्ञों ने उनके हस्ताक्षरों को सही बताया।

इधर अब इस मामले में 27 सितम्बर को सुनवाई के बाद माफियाओं के जेल या बेल पर निर्णय होगा।

वहीं प्रदीप अग्रवाल की याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होने तहसीलदार के समक्ष जो भूमि सरेंडर कर भूखण्ड पीडितो को प्लाट दिए थे बाद में वे इससे मूकर गए और उन्होंने उच्च न्यायालय में ओम श्री डेव्लवपर्स और अपने पार्टनर के माध्यम से याचिका दायर की थी।

इस पर शासन की ओर से पक्ष रखते हुए कहा गया था कि यह याचिका समय से लगाई गई है और यह सुनने योग्य नहीं है। भूखण्डों के संबंधों में पहले से ही जांच चल रही है और इस पर समिति की रिपोर्ट उच्च न्यायालय को फैसला देना है। ऐसे में यह याचिका सुनने योग्य नहीं है।

न्यायमूर्ति एस. ए. धर्माधिकारी ने अपने फैसले में लिखा कि यह याचिका गुण और सार से रहित है इसलिए इसे खारिज किया जाता है।

इसी के साथ अब सहकारी संस्थाओं में सदस्यों की जमीन हड़प कर रजिस्ट्री करवाने वाले माफियाओं के लिए यह संकेत हो गया है कि उनकी खरीदी गई जमीनें पर लगी याचिका सुनने योग्य नहीं है।