इंदौर।शहर में सर्वेश्वर प्रभु की चने के दाल के आकार की मूर्ति आई है। 5120 साल पुरानी मूर्ति अपने ऐतिहासिक महत्व और छोटे आकार की वजह से गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है। सरकार ने इसे जेड प्लस सुरक्षा दे रखी है। शालिग्राम पत्थर की बनी इस मूर्ति में राधा-कृष्ण का युगल स्वरूप नजर आता है। भगवान के इस स्वरूप के दर्शन भक्त मैग्नीफाइन ग्लास के माध्यम से करते है।

मूर्ति निम्बार्काचार्य श्यामशरणदेवाचार्य के साथ राजस्थान के सलेमाबाद से आई है। श्रीजी महाराज के साथ उनके 20 सेवादार भी है। वैष्णवों के सभी संप्रदायों में निम्बार्क सबसे प्राचीन है। सिंहस्थ में वैष्णव संप्रदायों में प्रथम स्थान इसी का आता है।नईदुनिया डॉट कॉम के अनुसार  सम्प्रदाय से जुड़े मुकेश कचोलिया व गोविंद राठी ने बताया कि निंबार्काचार्य सम्प्रदाय सलेमाबाद (राज.) के 49 वें पीठाधीश्वर श्यामशरणदेवाचार्य श्री ‘श्रीजी’ महाराज अग्रवाल नगर में आए है। उनके आगमन पर भक्तों ने उनका स्वागत किया। सम्प्रदाय की श्री सर्वेश्वरप्रभु (मणि ) जो कि 5120 वर्ष प्राचीन है जिसे गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में सबसे सूक्ष्म एवं प्राचीन मूर्ति माना गया है तथा जिसे भारत सरकार ने झेड सुरक्षा प्रदान की है। उसके दर्शन सुबह 8 से 8.45 बजे तक एवं श्यामशरणदेवाचार्य महाराज के दर्शन सुबह 11 से 12 बजे तक 25-26, ओल्ड अग्रवाल नगर इंदौर पर 10 से 16 फरवरी तक प्रतिदिन होंगे।

600 वर्षों से सलेमाबाद में है मूर्ति           आश्रम में उपलब्ध रिकार्ड के अनुसार भगवान सर्वेश्वर की यह ऐतिहासिक मूर्ति 600 वर्षों से सलेमाबाद स्थित आश्रम में रखी है। इसके पहले मूर्ति के वृंदावन में होने के दस्तावेज हैं। मूर्ति के बारे में संप्रदाय के प्रमुख संतों ने भी हजारों साल पहले ग्रंथों में उल्लेख किया था।
30 साल पहले मिली थी सुरक्षा
ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए 30 वर्ष पहले तत्कालीन सरकार ने जेड प्लस स्तर की सुरक्षा प्रदान की थी। पूजा आदि में विघ्न होने की वजह से आश्रम ने सुरक्षा घेरा छोटा करने का अनुरोध किया था। इसके बाद से बीस सेवादार और चार सुरक्षाकर्मी काफिले में रहते हैं। शेष सुरक्षा स्थानीय स्तर पर दी जाती है।