प्रदेश में  डेढ़ दशक से ज्यादा मुख्यमंत्री का पद संभालते शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बनने से पहले 5 बार सांसद रह चुके हैं। सबसे पहले विदिशा से 1991 में वे संसद भवन पहुंचे थे। इस सीट को अटल बिहारी वाजपेयी ने छोड़ा था। जिसके बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को विदिशा से अपना उम्मीदवार बनाया था। शिवराज इस सीट से 5 बार सांसद रहे।  5 मार्च 1959 को जन्मे शिवराज सिंह चौहान ने कल भोपाल में   अपनी कहानी अपनी जुबानी एक आयोजन में सुनाई ।

उन्होंने अपने चाचा द्वारा की गई उनकी पिटाई का भी जिक्र किया  कि उन्हें वो पिटाई आज भी याद है ।

शिवराज ने सुनाई बचपन की बातें

सीएम शिवराज सिंह चौहान ने युवाओं से कहा- ‘नेतृत्व करने की क्षमता कैसे विकसित होती है, ये मैं आपको बताता हूँ। मेरे गांव जैत की आबादी 1200-1300 से ज्यादा नहीं थी। मैं सामान्य और छोटे किसान परिवार में5 मार्च 1959को पैदा हुआ। मन में जिद थी, जुनून था. जज्बा था कुछ करने का। मुझे बचपन में ही पढ़ने के लिए भोपाल भेज दिया था। परिवार ने सोचा कि पढ़ लेगा तो सरकारी नौकरी मिल जाएगी, लेकिन मेरे मन में चेतना जगी कि कुछ कर शिवराज। केवल पढ़ने से काम नहीं चलेगा। फिर मैने गीता जी और स्वामी विवेकानंद की जीवनी भी पढ़ी तो लगा कि पढ़ने के साथ कुछ और कर। तब मुझे पता चला कि गांव में मजदूरी बहुत कम मिलती है।

‘एक जमाना था, जब मजदूरी पैसे में नहीं, अनाज के जरिए दी जाती थी। तब अनाज को नापते तौलते नहीं थे। पाई और कुडा होता था।
पाई मतलब सवा किलो अनाज। कुड़ा मतलब पांच पाई। तब ढाई पाई मजदूरी मिलती थी। इसलिए मैंने गांव के मंदिर में मजदूर इकट्ठा किए। उम्र कम थी, सातवीं में पढ़ता था। थोड़े से ही मजदूर आए। मैने मजदूरों से कहा कि देखो भाई… मजदूरी बहुत कम मिलती है, हमें कुछ करना चाहिए। मजदूर बोले कि हम क्या कर सकते हैं भैया। फिर हमने कहा कि आंदोलन करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ और जुलूस निकालने का तय किया।

वो धुनाई हुई, जिसे में आज तक नहीं भूला-

‘लालटेन की रोशनी में रात में फिर मीटिंग की और तय किया कि ढाई पाई नहीं, पांच पाई लेंगे, वरना काम बंद करेंगे। जुलूस निकला। एक मजदूर ने लालटेन सिर पर रख लिया। नारे लगाते हुए गांव से गुजरने लगे। मैं आगे-आगे था और मजदूर पीछे-पीछे। जैसे ही जुलूस हमारे घर के
दरवाजे पर पहुंचा तो लठ लेकर मेरे चाचाजी आ गए और बोले- आओ मैं देता हूँ मजदूरी। जैसे ही उन्होंने लठ उठाया, मजदूर भाग निकले और मैं पकड़ लिया गया। और इसके बाद वो धुनाई हुई, जिसे मैं आज तक नहीं भूला। हमारा आंदोलन वहीं खत्म हो गया, लेकिन मैं बैठा नहीं’।

‘कुछ समय बाद बुधनी में पार्टी का काम खड़ा करने के लिए पदयात्रा करने की सोंची। सलकनपुर मंदिर में देवी जी के दर्शन करने के बाद पद यात्रा शुरू कर दी। साथ में एक साथी थे। इस तरह पदयात्रा में हम दो ही थे। दोनों निकल पड़े। हम गांव-गांव घूमे और नारे लगाते। धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे। संग होने वाले पक्के साथी बन गए। फिर हमने नील की पुड़िया खरीदी और पानी में घोलकर दीवारों पर लिखते कि 4 अप्रैल चलो बुधनी’…।

मोड़ा (शिवराज) बोले अच्छा है-

‘चार-पांच दिन में यह बात फैल गई कि मोड़ा (शिवराज) बोले अच्छा है। पान गुड़ारिया गांव पहुंचे तो वहां माइक पर खूब बोले।तब से मामा का भाषण माइक पर होने लगा। इस बीच मैने पूर्व मुख्यमंत्री सुदरलाल पटवा जी को फोन लगाया। मैने समापन पर उन्हें बुलाया तो उन्होंने कहा कि बुधनी में चार लोग तो इकठ्ठा होते नहीं। वहां क्या रखा है? इसके बाद में चुप हो गया। फिर भी हम चलते रहे और जब समापन हुआ तो सात हजार लोग पदयात्रा में शामिल थे।

पैदल घूमता था, मोटर गाड़ी नहीं थीं

शिवराज ने एक और किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा- मैं  गांव का लड़का था। पैदल घूमता था, मोटर गाड़ी नहीं थी। आज प्रदेश की साढ़े 8 करोड़ जनता की जिंदगी की जवाबदारी मिली है। चूप नहीं बैठ सकता।