शहर के गमगीन लोगों को यह उम्मीद है कि मुख्यमंत्री इस बार उन दोषी नेताओं का भी चेहरा सामने लाएंगे ,जिन्होंने यहां इस बावड़ी के अवैध निर्माण को बचाने के लिए लगातार अपनी ताकत का उपयोग किया। अब शहर को भी ऐसे नेतृत्व की जरूरत है या नहीं यह भी तय होना चाहिए। अवैध निर्माणों और स्वच्छता के तमगे से लेकर पोहे-जलेबी वाला शहर घोषित करवाने वालों के कारण अब शहर पूरी तरह व्यवस्था के भरोसे हो गया है। एक बावड़ी नहीं पूरे शहर में कई बावडिय़ां ढांकी जा रही है और उनके ऊपर वे राजनेता अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं जो बावड़ी के धसकने पर मासूम बनकर मृतकों को देख रहे हैं और घायलों का हाल जान रहे हैं।
नगर निगम ने 30 जनवरी को भी स्नेह नगर के रहवासियों की शिकायत पर नोटिस दिया था
परंतु इस पर कार्रवाई तो नहीं हुई बल्कि उलटे रहवासियों पर ही कार्रवाई करवा दी गई।
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इसके अलावा 23 अप्रैल, 25 अप्रैल को भी यहां कार्रवाई को लेकर चिठ्ठी-पत्री का दौर जारी था। हर हादसे के बाद केवल और केवल जांचों का ऐलान तो हो ता है पर कार्रवाई नहीं होती। यह एक मामला नहीं अवैध निर्माणों ने पूरे शहर को बावड़ी के ढक्कन पर बैठा दिया है। शहर की स्थिति यह हो गई है कि शहर में एक भी राजनेता ऐसा नहीं है जिसके पीछे विश्वास के साथ शहर के लोग चल सकें। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस क्षेत्र के राजनेताओं को नहीं मालूम था कि यह बावड़ी अवैध रूप से बिना किसी सुरक्षा के ढांक दी गई है। अब वे ही नेता मृत परिवारों के घर मरहम लगाने जा रहे हैं।शहर को सोचना होगा कि उन्हें कौन सा नेतृत्व चाहिए। वह जो पीछे से इस प्रकार के अवैध निर्माणों पर कार्रवाई नहीं होने दे रहा है या फिर वह जो अपनी एक विशेष पहचान ऐसे मामलों में समझौता नहीं करने वाले के रूप में बना सके।
नवनीत शुक्ला संपादक दैनिक दोपहर