इंदौर। मध्य प्रदेश में भाजपा ने 51 सी फीसदी वोट के साथ 200 से अधिक विधानसभा सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया में है, लेकिन हकीकत यह है कि पार्टी के सामने बहुमत का आंकड़ा छूना भी मुश्किल बना हुआ है। इसका खुलासा सत्ता और संगठन को सौंपी गई राष्ट्रीय वे स्वयं सेवक संघ की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, संघ ने अपनी रिपोर्ट में स उन 160 सीटों पर सत्ता और संगठन को व काम करने के लिए कहा है जहां भाजपा काफी कमजोर है। वहीं यह भी बताया गया है कि वर्तमान में जिन 127 सीटों पर भाजपा काबिज है उनमें से केवल 70
सीटों पर ही पार्टी जीतने की स्थिति है। रिपोर्ट की मानें तो भाजपा वर्तमान समय में 100 सीटें भी नहीं जीत रही है। इसका कारण भाजपा नहीं क्षेत्रीय विधायकों के प्रति नाराजगी होना है। पिछले चुनाव में भी कई विधानसभा में भाजपा विधायकों के कारण नुकसान उठाना पड़ा था।
गौरतलब है कि भाजपा ने अभी तक 3 सर्वे और संघ ने करीब आधा दर्जन सर्वे करवाया है, जिसमें भाजपा की स्थिति सर्वे दर सर्वे कमजोर होती जा रही है। यही कारण है कि भाजपा के बड़े पदाधिकारियों उस के साथ ही संघ के नेताओं का फोकस मप्र पर है।
प्रदेश में सरकार और मंत्रियों के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकम्बेंसी है। इसको खत्म करने के लिए पार्टी और संघ कई कार्यक्रम बनाकर सक्रिय हैं। लेकिन उसके बाद भी स्थिति सुधर नहीं रही है।
उपचुनाव वाली सीटों पर भी बिगड़ा खेल :
प्रदेश में भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का आलम यह है कि उपचुनाव वाली सीटों पर भी पार्टी की स्थिति खराब है। गौरतलब है कि उपचुनाव में भाजपा ने 2018 में हारी इन 21 सीटों जौरा, अम्बाह, मेहगांव, ग्वालियर, भांण्डेर, पोहरी, बमोरी,अशोकनगर, मुंगावली, सुरखी, पृथ्वीपुर, । बड़ामलहरा, अनूपपुर, सांची, हाटपिपल्या, मांधाता, नेपानगर, जोबट, बदनावर, सांवेर , और सुवासरा को जीत लिया है। लेकिन पार्टी इन्हें भी चुनौतिपूर्ण मानकर चल रही है।
160 सीटों पर गड़बड़ाया गणित
एक तरफ मप्र में भाजपा गुजरात की तरह रिकॉर्ड जीत हासिल करने के फॉर्मूले पर काम कर रही है, वहीं दूसरी तरफ संघ ने जो रिपोर्ट सौपी है, उसमें कहा गया है कि पार्टी प्रदेश की 230 में से 160 सीटों पर कमजोर है।
कब्जे वाली 57 सीटों पर भाजपा कमजोर
भाजपा वर्तमान समय में जिन 127 सीटों पर काबिज है, उनमें से 57 सीटों पर हार का खतरा मंडरा रहा है। ये सीटें हैं- विजयपुर, जौरा, अम्बाह, मेहगांव, ग्वालियर, भांडेर, पोहरी, कोलारस, बमोरी, गुना, अशोकनगर, मुंगावली, बीना, नरियावली, टीकमगढ़, निवाड़ी, जतारा, पृथ्वीपुर, खरगापुर, चंदला, मल्हरा, जबेरा, पवई, नागौद, अमरपाटन, रामपुर बघेलान, देवतालाब, चुरहट, सीधी, गुढ़, सिंगरौली, ब्यौहारी, अनूपपुर, मुडवारा, सिहोरा, मंडला, परसवाड़ा, आमला, टिमरनी, सिवनी मालवा, सांची, बासौदा, हाटपिपल्या, मांधाता, पंधाना, नेपानगर, बड़वानी, जोबट, धार, बदनावर, इंदौर-5, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, रतलाम ग्रामीण, जावरा, सुवासरा, मनासा, नीमच आदि ।
इंदौर और रतलाम की घटनाओं ने बढ़ाई चिंता
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप जोशी मानते है कि एक सप्ताह में हुई दो घटनाओं ने भाजपा की चिंता को ओर बढ़ा दिया है। उनके अनुसार:
मौसम का पारा आम इंसान को झुलसा रहा है, वहीं इस बड़े हुए तापमान का ज्यादा असर भाजपा, संघ और अन्य अनुशांगिक दल संगठनों पर ज्यादा नजर आ रहा है। बीते एक सप्ताह में इंदौर में हुई दो घटनाओं से प्रदेश भाजपा संगठन उबरा भी नहीं था कि शनिवार है को रतलाम की घटना ने भाजपा प्रदेश संगठन को चिंता में डाल दिया। चुनावी साल में जिस मालवा निमाड़ से पार्टी सरकार बनाने की उम्मीद कर रही है वही पर आपसी टकराव की घटनाओं को जिम्मेदार काफी गंभीर मान रहे है। गौरतलब है कि मालवा निमाड़ के चौदह जिलों की 66 विधानसभा सीटें कमजोर होने से ही कांग्रेस की सरकार बन गई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत में सूबे के सात विधायक शामिल थे और पुनः भाजपा की सरकार बनाने में मालवा निमाड़ का अहम योगदान रहा। बहरहाल इंदौर में युवा मोर्चा पदाधिकारियों के बीच विवाद का मसला हो या बजरंगियों पर लाठी चार्ज, या फिर रतलाम की जिलाध्यक्ष का विरोध घटनाऐं बता रही है कि भाजपा, संघ और अनुषांगिक संगठनों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
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समर्थन में गए नेताओं को मो टोलना नाराजगी
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