अभिषेक मिश्र (पत्रकार)
_2028 का वर्ष मध्यप्रदेश के लिए ऐतिहासिक और राजनीतिक दोनों ही दृष्टियों से बेहद अहम होने जा रहा है। एक ओर उज्जैन की पवित्र धरती पर सिंहस्थ का भव्य आयोजन होगा, जिसमें देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत जुटेंगे, तो दूसरी ओर इसी साल विधानसभा चुनाव भी होंगे। यह संयोग ही है कि दोनों आयोजन एक ही वर्ष में होने जा रहे हैं, और यही वजह है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए यह समय उनके नेतृत्व, प्रशासनिक क्षमता और राजनीतिक दूरदर्शिता की सबसे बड़ी परीक्षा बनकर सामने आएगा।_
मोहन यादव स्वयं उज्जैन के मूल निवासी हैं और इस शहर के प्रति उनका भावनात्मक जुड़ाव किसी से छिपा नहीं है। यही कारण है कि सिंहस्थ का सफल और निर्विघ्न संचालन न सिर्फ उनके लिए व्यक्तिगत गर्व का विषय होगा, बल्कि यह उनकी राजनीतिक पहचान को भी नए आयाम देगा। सिंहस्थ में हर कदम, हर निर्णय और हर व्यवस्था का सीधा असर प्रदेश की जनता तक पहुंचेगा। अगर आयोजन भव्य, व्यवस्थित और शांति से सम्पन्न हुआ, तो इसका संदेश यह होगा कि मोहन यादव न केवल धार्मिक भावनाओं को सम्मान देते हैं बल्कि बड़े आयोजनों को कुशलता से संभालने की क्षमता भी रखते हैं।
सिंहस्थ की जटिलताएं और चुनौतियां
_सिंहस्थ का आयोजन किसी सामान्य मेले या पर्व से कहीं अधिक जटिल होता है। करोड़ों श्रद्धालुओं का आगमन, अनेक अखाड़ों और साधु-संतों की व्यवस्थाएं, सुरक्षा की व्यापक तैयारी, यातायात का सुचारु संचालन, स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी इंतजाम,ये सभी ऐसे पहलू हैं जो प्रशासन के लिए भारी चुनौती पेश करते हैं।_
_इस बार की चुनौती और बड़ी है, क्योंकि कोरोना महामारी के बाद मध्यप्रदेश में पहली बार इतने विशाल पैमाने पर धार्मिक आयोजन होगा। इसमें न केवल देश बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचेंगे। स्वास्थ्य सुरक्षा, मेडिकल इमरजेंसी और आपदा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही, उज्जैन जैसे धार्मिक नगर में बुनियादी ढांचे को नए स्तर तक पहुंचाना अनिवार्य होगा।_
_मोहन यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी होगी कि व्यवस्था केवल सरकारी न लगे, बल्कि आमजन की भागीदारी के साथ सहज और समग्र अनुभव दे। अगर व्यवस्थाएं असफल रहीं, भीड़ में अव्यवस्था हुई या सुरक्षा में चूक हुई तो इसका राजनीतिक असर चुनाव में देखने को मिल सकता है।_
राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्व
_2028 में विधानसभा चुनाव सिंहस्थ के कुछ ही महीने बाद होंगे। सिंहस्थ में आने वाले करोड़ों लोग न केवल धार्मिक आस्था के कारण जुड़ते हैं, बल्कि उनकी नजरें सरकार की कार्यप्रणाली पर भी रहती हैं। सिंहस्थ का अनुभव सीधे-सीधे जनता के मन में सरकार की छवि तय करेगा।_
_यदि सिंहस्थ का आयोजन सफल रहा, तो यह मोहन यादव और उनकी टीम के लिए चुनावी अभियान की मजबूत नींव का काम करेगा। यह दिखाएगा कि प्रदेश सरकार बड़े आयोजनों को संभालने में सक्षम है और धार्मिक परंपराओं को सम्मानपूर्वक निभाने का सामर्थ्य रखती है। दूसरी ओर, यदि व्यवस्थाएं बिगड़ीं या असंतोष फैला, तो विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बना सकता है।_
_सिंहस्थ का महत्व केवल उज्जैन तक सीमित नहीं है। इंदौर, भोपाल, जबलपुर और पूरे मालवा-निमाड़ क्षेत्र में इसका व्यापक प्रभाव होगा। यह वही क्षेत्र है जहां चुनाव के नतीजे अक्सर सत्ता की दिशा तय करते हैं।_
मुख्यमंत्री के प्रयास और रणनीति
_मोहन यादव ने सिंहस्थ को लेकर शुरुआती दौर से ही गंभीरता दिखाई है। उन्होंने सिंहस्थ की तैयारियों के लिए विशेष टास्क फोर्स का गठन किया है, जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ धार्मिक नेताओं और सामाजिक संगठनों को भी शामिल किया गया है।_
_योजना केवल भीड़ प्रबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें स्मार्ट टेक्नोलॉजी का भी समावेश किया जा रहा है। ड्रोन सर्विलांस, डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और मोबाइल ऐप जैसी आधुनिक सुविधाएं श्रद्धालुओं को सुगमता देंगी। इसके अलावा, मोहन यादव उज्जैन के बुनियादी ढांचे को स्थायी रूप से विकसित करने पर भी जोर दे रहे हैं, ताकि सिंहस्थ के बाद भी शहर को लंबे समय तक इसका लाभ मिले।_
_सिंहस्थ को स्वच्छता, पर्यावरण और ग्रीन एनर्जी के साथ जोड़ने की उनकी पहल इसे आधुनिक और पारंपरिक दोनों स्वरूपों में प्रस्तुत करेगी।_
सिंहस्थ: आस्था का उत्सव और शासन की परीक्षा
_सिंहस्थ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं होता है, बल्कि इसे शासन, प्रशासन और समाज के समन्वय क्षमता की परीक्षा भी माना जाता है। मोहन यादव के सामने यह अवसर है कि वे अपनी पहचान सिर्फ एक राजनेता तक सीमित न रखें, बल्कि खुद को दूरदर्शी और सक्षम प्रशासक के रूप में स्थापित करें।_
_यदि सिंहस्थ में सब कुछ सुचारु और व्यवस्थित रहा, तो यह न केवल उज्जैन_ _बल्कि पूरे प्रदेश के लिए गौरव का क्षण होगा। यह आयोजन प्रदेश की छवि को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊंचाई देगा और विधानसभा चुनाव में मोहन यादव की स्थिति को और मजबूत करेगा।_
_2028 का सिंहस्थ और_ _चुनाव एक-दूसरे के पूरक हैं। इसलिए सिंहस्थ की सफलता केवल धार्मिक आस्था की पूर्ति नहीं होगी, बल्कि यह जनता के विश्वास का प्रमाण भी बनेगी।मोहन यादव के लिए यह अवसर है कि वे अपनी राजनीतिक यात्रा को एक नए शिखर पर पहुंचाएं।_
_सिंहस्थ के दौरान उनकी हर नीति, हर निर्णय और हर व्यवस्था चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेगी। यानी ये महाआयोजन केवल आस्था का महासागर नहीं, बल्कि सत्ता की दिशा तय करने वाली लहर भी साबित हो सकता है ।
(ये लेखक के निजी विचार हैं )