(डॉ अजय खेमरिया)

सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने बांबे हाईकोर्ट के लिए पिछले सप्ताह 14 वकीलों के नाम को हरीझंडी दी है।इसमें मौजूदा मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई के भतीजे राज दामोदर वाकोडे भी शामिल हैं।यही नही रंजीत सिंह भौंसले और मेहरोज अशरफ खान पठान भी जज के रुप में नियुक्ति की सिफारिश पाने वाले वकीलों में शामिल हैं।भौंसले के पिता बैरिस्टर राजा भौंसले महाराष्ट्र में एडवोकेट जनरल और बॉम्बे हाईकोर्ट में जज रह चुके हैं।खासबात यह है कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश इन्ही राजा भौंसले के साथ जूनियर के रूप में काम कर चुके हैं।अशरफ पठान मुंबई में मुख्य न्यायाधीश श्री गवई के जूनियर के रूप में नामंकित रहे हैं।इन सिफारिश का विस्तृत ब्यौरा अभी सार्वजनिक नही किया गया है।सवाल मुख्य न्यायाधीश के रिश्तेदार और जूनियर,सीनियर का नही है बल्कि भारतीय न्यायपलिका के शीर्ष पर नैतिकता से जुड़ा है।जस्टिस गवई अकेले जज नही है जिनके सगे सबन्धियों को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति मिल रही हो।आजादी के बाद से ही हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियों को लेकर सवाल उठते रहे हैं।संविधान से इतर मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था की तो सर्वाधिक तीखी आलोचना भी होती है।मौजूदा सरकार ने जज चयन के लिए नया कानून भी बनाया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे नही माना।
कोलेजियम का एक दूसरा निर्णय भी इन दिनों चर्चा में हैं।पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपुल एम पंचोली को सुप्रीम कोर्ट के लिए पदोन्नति दी गई है।कोलेजियम समिति में सदस्य जस्टिस बी वी नागरत्ना इससे सहमत नही है।उन्होंने जस्टिस पंचोली की वरिष्ठता पर सवाल उठाए हैं।जस्टिस नागरत्ना के अनुसार जस्टिस पांचोली देश के अलग अलग हाईकोर्ट की समेकित वरिष्ठता सूची में 57 वे नंबर पर है,उनसे वरिष्ठ जज सुप्रीम कोर्ट की पदोन्नति के लिए उपलब्ध है।इसके अलावा जस्टिस नागरत्ना गुजरात मूल का मुद्दा भी उठा रही हैं उनकी आपत्ति है कि विपुल पांचोली के सुप्रीम कोर्ट आने से गुजरात के तीन जज हो जायेंगे।जस्टिस नागरत्ना ने अपने असहमति पत्र में लिखा है कि जस्टिस पांचोली की पदोन्नति प्रशासन के प्रतिकूल है बल्कि कॉलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता को भी खतरे में डालेगी। कोलेजियम ने 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के लिए जस्टिस आलोक आराधे और विपुल पांचोली को सुप्रीम कोर्ट के लिए पदोन्नत किया है।इस निर्णय को करने वाली समिति में बीवी नागरत्ना के अलावा मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई,जस्टिस सूर्यकान्त,जस्टिस विक्रम नाथ एवं जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल रहे हैं। जाहिर है आलोचनाओं के इस प्रहसन ने कोलेजियम के अंतर्विरोध और आपसी मतभेदों को भी उजागर कर दिया है।जस्टिस नागरत्ना जिस मुद्दे को उठा रही है वह तकनीकी और नैतिक रूप से उचित नही है क्योंकि 17 अगस्त 2021 को कोलेजियम ने जिन 09 हाईकोर्ट जजों को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति दी थी उनमें स्वयं नागरत्ना भी हैं। जस्टिस नागरत्ना उस समय किसी भी हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश नही थी और उन्हें यह सोचकर सुप्रीम कोर्ट लाया गया था कि वे देश की पहली मुख्य न्यायाधीश बनेंगी।जस्टिस नागरत्ना के पिता
ई एस वेंकटरमैया भी सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं। गुजरात को लेकर उनकी यह आपति भी ठीक नही है क्योंकि मप्र के भी वर्तमान में तीन जज सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत हैं।सुप्रीम कोर्ट वरिष्ठता के हिसाब से जस्टिस नागरत्ना 2027 में कुछ दिन के लिए मुख्य न्यायाधीश बनेगी ही।अगर विपुल पांचोली पदोन्नति पाते है तो वे भी देश के 60वे मुख्य न्यायाधीश होंगे।मुख्य न्यायाधीश गवई के 45 बर्षीय भतीजे राज वोकाडे का भी मुख्य न्यायधीश बनना तय है।इसके साथ ही जस्टिस गवई भी उन 17 न्यायिक खानदानों में शामिल हो जायेंगे जिनके दो सदस्य सुप्रीम कोर्ट में पदस्थ रहे हैं।
सच्चाई यह है कि सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम नैतिक और तकनीकी रूप से भयंकर अंतर्द्वंद का शिकार भी है।बॉम्बे हाईकोर्ट के लिए नामंकित 14 वकीलों का मामला हो या जस्टिस विपुल पांचोली की पदोन्नति दोनों ही मामलों में कोलेजियम की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल तो खड़े हो ही रहे हैं।जस्टिस पांचोली विवाद से ऐसा भी लगता है कि जजों में तीखे मतभेद भी है जिसके चलते न्यायिक प्रशासन में उपयुक्त चयन प्रभावित हो रहे हैं।चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और अवसर की समानता अभी भी न्यायपालिका की चौखट पर दम तोड़ रही है।सुप्रीम कोर्ट में अब तक कार्यरत 279 जज में से 32 परिवार आपस में कुटुम्बीजन रहे हैं। इनमें 104 जज ही ऐसे रहे है जो पहली पीढ़ी के वकील है यानी जिनकी प्रतिष्ठित पारिवारिक कानूनी पृष्ठभूमि नही रही है।हाल ही में कोलेजियम द्वारा मप्र हाईकोर्ट के लिए पदोन्नत किये गए एक जज के विरुद्ध अधीनस्थ महिला सिविल जज ने गंभीर आरोप लगाए थे।कोलेजियम द्वारा महिला जज के आरोपों को अनसुना करने पर सिविल जज ने सेवा से स्तीफा दे दिया था। वकील कोटे से नियुक्त एक अन्य जज के विरुद्ध भी अधीनस्थ जजों ने लम्बा पत्राचार किया था लेकिन कोलेजियम ने कोई ध्यान नही दिया।2024 में कोलेजियम ने रिश्तेदार जजों की नियुक्ति पर प्रतिबंध का निर्णय लिया था लेकिन पिछले डेढ़ महीने में कोलेजियम की सिफारिशें बता रही हैं कि अंकल जज सिंड्रोम से हमारी न्यायपालिका मुक्त होने के लिए तैयार नही है।सोशल मीडिया पर लोग मीम्स बनाकर जजों की नियुक्ति का उपहास उड़ा रहे हैं।इसलिए
अब वक्त आ गया है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की चयन प्रक्रिया को पारदर्शिता और प्रमाणिकता की कसौटी पर कसा जाए।

(लेखक के अपने विचार )