इंदौर ।वे आज दुनिया में नहीं है लेकिन 31 साल से जिस संघर्ष को लेकर उनके साथी आंदोलन चलाए हुए हैं उसमें भी उनके कपड़ों को उनकी उपस्थिति बनाकर  बैठक बना कर शामिल करते है।

इकतीस साल पहले वो आज ही की तारीख थी जब शहर की पहचान रही हुकुमचंद मिल बंद कर दी गई थी । मिल के बंद होने के बाद भी मिल मजदूरों का संघर्ष जारी है। अभी तक मिल मजदूरों को उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी उनके हक का पैसा नहीं मिल पाया है। इसके बाद भी उम्मीद कायम है।

हर रविवार मिल के मजदूर मिल के गेट पर मिलते है,और एक दूसरे को दिल की बात  कहते हैं।
रविवार को मिल के बंद होने के एक दिन पूर्व अभी तक मृत 2200 मजदूरों को श्रद्धांजलि दी गई।

इसी बीच एक हृदय विदारक वाक्या भी हुआ जिसमे एक दिवंगत मज़दूर की पुत्री अपने पिता के कपडे ले करके आई व यह कहते हुए .. श्रद्धांजलि में शामिल हुई कि मेरे पिता कहा करते थे कि मैं अगर ना रहू तो भी मिल के हर संघर्ष में मेरे कपडे ले जा कर मेरी उपस्थिति दर्ज कराना यह सुन सब मजदूर भावुक हो उठे…. सभा में करीब 1000 से ज्यादा मज़दूर परिवार सहित उपस्थित हुए। सभा को हरनाम सिंह धालीवाल, नरेंद्र श्रीवंश, किशनलाल बोखरे ने सम्बोधित किया संचालन सुधाकर कांबले ने किया।