इंदौर.भारतीय जनता पार्टी द्वारा घोषित किए गए प्रत्याशियों और संभावित दावेदारों को ले कर इंदौर में विरोध के साथ सड़कों पर भी कार्यकर्ता आ रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की सूची की अभी कोई खबर नहीं होने के बावजूद इंदौर विधानसभा चार को ले कर सिंधी समाजजनों में खींचतान शुरू हो गईं है।
यहां से कांग्रेस से उम्मीदवारी का दावा कर रहे राजा मांधवानी का सोशल मीडिया पर सिंधी नेताओं ने विरोध करना भी शुरू कर दिया है । ये सिंधी नेता भी प्रत्याशी बनने के लिए तैयार है।
सवा दो लाख से ज्यादा मतदाताओं की इस विधानसभा में करीब 50 हजार सिंधी वोटर है तो सिख समाज से साढ़े सात हजार वोट हैं। तीस हजार के करीब ब्राह्मण हैं और बाईस हजार जैन वोट हैं।
वर्षों पहले सन 1985 में इस विधानसभा सीट से कांग्रेस की ओर से नंदलाल माटा के विधायक चुने जाने के बाद यहां से कभी कोई दूसरा सिंधी उम्मीदवार जीता ही नहीं । हालांकि सन 2008 में कांग्रेस ने यहां एक बार फिर सिंधी उम्मीदवार के रूप में उद्योगपति गोविंद मंघानी को मैदान में उतारा था। मगर वे हार गए थे ।
1990 से है भाजपा का कब्जा
दरसल इस सीट पर 1990 से अभी तक भारतीय जनता पार्टी का ही कब्जा है ।सन 1990 में यहां कैलाश विजयवर्गीय जीते थे। और 1993 से आज तक यह सीट गौड़ परिवार के कब्जे में ही है ।
सन 1993, 1998 और 2003 तक इस सीट पर लक्ष्मण सिंह गौड जीतते आए थे। उनके निधन के बाद 2008, 2013 और 2018 में उनकी पत्नी मालिनी गौड़ इस सीट से आज तक विधायक है।
तीन दशक से गौड परिवार
गौड़ परिवार के तीन दशक से इस सीट पर काबिज रहने के कारण इस बार मालिनी गौड़ का विरोध भी होने लगा है ।
विरोध भोपाल तक
बताया जा रहा है कि सोमवार को भाजपा नेताओं का एक गुट भोपाल में वीडी शर्मा और नरेन्द्रसिंह तोमर से मिलाऔर वहां
मौजूदा विधायक मालिनी गौड़ का विरोध किया।
कांग्रेस सिंधी उम्मीदवार की तैयारी में
उधर कांग्रेस फिर इस सीट पर सिंधी उम्मीदवार की तैयारी करते दिखाई दे रही है।सिंधी समाज के लोगों का कहना है कि जब-जब सिंधी चेहरे को टिकट दिया गया है, समाज ने एकजुटता दिखाई है। यहां सिंधी को टिकट मिलता है, तो उसका असर आसपास की उन सीटों पर भी पड़ेगा, जहां सिंधी समाज के लोग रहते हैं।
राजा मंधवानी ने खुद को कांग्रेसी प्रत्याशी मान कर प्रचार करना भी शुरू कर दिया। जबकि ईश्वर झामनानी गोपाल कोडवानी आदि नेता भी कांग्रेस से टिकट की चाह में हैं।
मांधवनी का विरोध करने वाले कहते हैं उद्योगपति नहीं, कांग्रेस ऐसे नेता को प्रत्याशी बनाए जिनका जनता से संपर्क हो। गोविंद मंघनी भी उद्योगपति थे, मगर उनका जनता से संपर्क नहीं था,इसलिए हारे थे।
अभी जब कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं लेकिन संभावित प्रत्याशियों को ले कर खींचतान शुरू है। टिकिट चाहे किसी को भी मिले, दोनों ही दलों में भीतरघात की संभावना तो बनी ही रहेगी।