पूरे शहर ही नहीं पूरे देश को हिला देने वाली इस घटना से यह तय हो गया है कि शहर में हादसों के बाद राजनेताओं से लेकर प्रशासन तक मुस्तैद हो जाता है, परंतु उन निरीह लोगों को क्या मालूम था कि वे जिस जगह पुण्य के लिए हवन कर रहे हैं वहां उनके हाथ जल रहे हैं। इसके लिए केवल राजनेता और व्यवस्था ही दोषी हैं।

जो राजनेता अस्पतालों में घायलों को देखने जा रहे हैं उन्हें भी अपने अंदर झांक लेना चाहिए जिन्होंने नगर निगम द्वारा नोटिस जारी होने के बाद भी यहां कोई कार्रवाई नहीं होने दी। दूसरी ओर सवाल यह भी उठता है कि इस हादसे की जवाबदारी तो तय होना चाहिए कि कौन सा राजनेता इसके लिए दोषी है, और कार्रवाई के लिए जब शिकायतें की जाती रहीं तो उन्हें कौन दबाता रहा। प्रदेश के मुखिया का हमेशा ऐसे मामलों में बेहद संवेदनशील नजरिया रहा है और उन्होंने दोषी अधिकारियों को कभी माफ नहीं किया है।

शहर के गमगीन लोगों को यह उम्मीद है कि मुख्यमंत्री इस बार उन दोषी नेताओं का भी चेहरा सामने लाएंगे ,जिन्होंने यहां इस बावड़ी के अवैध निर्माण को बचाने के लिए लगातार अपनी ताकत का उपयोग किया। अब शहर को भी ऐसे नेतृत्व की जरूरत है या नहीं यह भी तय होना चाहिए। अवैध निर्माणों और स्वच्छता के तमगे से लेकर पोहे-जलेबी वाला शहर घोषित करवाने वालों के कारण अब शहर पूरी तरह व्यवस्था के भरोसे हो गया है। एक बावड़ी नहीं पूरे शहर में कई बावडिय़ां ढांकी जा रही है और उनके ऊपर वे राजनेता अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं जो बावड़ी के धसकने पर मासूम बनकर मृतकों को देख रहे हैं और घायलों का हाल जान रहे हैं।

नगर निगम ने 30 जनवरी को भी स्नेह नगर के रहवासियों की शिकायत पर नोटिस दिया था
परंतु इस पर कार्रवाई तो नहीं हुई बल्कि उलटे रहवासियों पर ही कार्रवाई करवा दी गई।

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इसके अलावा 23 अप्रैल, 25 अप्रैल को भी यहां कार्रवाई को लेकर चिठ्ठी-पत्री का दौर जारी था। हर हादसे के बाद केवल और केवल जांचों का ऐलान तो हो ता है पर कार्रवाई नहीं होती। यह एक मामला नहीं अवैध निर्माणों ने पूरे शहर को बावड़ी के ढक्कन पर बैठा दिया है। शहर की स्थिति यह हो गई है कि शहर में एक भी राजनेता ऐसा नहीं है जिसके पीछे विश्वास के साथ शहर के लोग चल सकें। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस क्षेत्र के राजनेताओं को नहीं मालूम था कि यह बावड़ी अवैध रूप से बिना किसी सुरक्षा के ढांक दी गई है। अब वे ही नेता मृत परिवारों के घर मरहम लगाने जा रहे हैं।शहर को सोचना होगा कि उन्हें कौन सा नेतृत्व चाहिए। वह जो पीछे से इस प्रकार के अवैध निर्माणों पर कार्रवाई नहीं होने दे रहा है या फिर वह जो अपनी एक विशेष पहचान ऐसे मामलों में समझौता नहीं करने वाले के रूप में बना सके।

नवनीत शुक्ला संपादक दैनिक दोपहर