हेमंत पाल

कोई फिल्म अपनी रिलीज से पहले कितनी चर्चा में रह सकती है, ‘पठान’ ने उस ऊंचाई पर जाकर निशान लगा दिया। इस फिल्म ने व्यावसायिक सफलता का वो आंकड़ा छू लिया, जिसकी कल्पना इस फिल्म को बनाने वालों को भी नहीं की होगी। ये फिल्म सिर्फ सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म ही नहीं बनी, बल्कि इसने कई ऐसे प्रतिमान गढ़ दिए जिन्हें छूने की कोशिश में अब बरसों लग जाएंगे!
शाहरुख़ खान की फिल्म ‘पठान’ की सफलता ने फिल्म इंडस्ट्री को कोरोना काल के उस दर्द से भी उबार दिया, जिससे निकलना आसान नहीं लग रहा था। लगने लगा था कि कहीं हिंदी फिल्मों का मतलब साऊथ की सुपर हिट फिल्मों की डबिंग तक ही सीमित होकर न रह जाए, पर इस फिल्म ने उस सारी धारणाओं को खंडित कर दिया। ये कमाल भी उस कलाकार ने किया जिसके बारे में कहा जाने लगा था कि अब वे थक गए! शाहरुख़ खान 90 के दशक में जिस तरह रोमांस के बादशाह बनकर उबरे थे, वो एक इतिहास है।

अब उन्होंने 57 साल की उम्र में एक्शन करके साबित कर दिया कि वे अभी चुके नहीं है। शाहरुख़ ऐसे कलाकार हैं, जो हर रोल में फिट बैठते हैं। वे करीब चार साल बाद परदे पर दिखाई दिए।
‘जीरो’ के फ्लॉप होने के बाद तो शाहरुख के करियर पर ही सवाल उठाना शुरू हो गए थे। कहा जाने लगा था, कि अब उन्हें रिटायरमेंट ले लेना चाहिए। ऐसे माहौल में ‘पठान’ से उनकी वापसी ने इतिहास बनाने के साथ उन लोगों के मुंह पर ताले जड़ दिए, जो उन पर उंगली उठा रहे थे। शाहरुख़ ने न सिर्फ खुद की क़ाबलियत पर उंगली उठाने वालों को चुप नहीं किया, बल्कि ये भी साबित किया कि यदि फिल्म अच्छी होगी तो जरूर चलेगी, उसे कोई रोक नहीं सकता। यह भी कहा सकता है कि कई बार फिल्म के प्रति उत्सुकता जगाने में इसकी निगेटिव पब्लिसिटी का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। यदि ये सब नहीं होता, तो शायद ‘पठान’ आसमान की वो ऊंचाई नहीं छूती, जहां तक वो पहुंची है!


‘पठान’ की सफलता के बहाने ऐसे कई सवालों का जवाब मिल गया। अब इस बात पर बहस हो सकती है कि आखिर ‘पठान’ को दर्शकों ने क्यों पसंद किया! शाहरुख़ खान की अदाकारी कारण, फिल्म की चुस्त पटकथा की वजह से या उसके साथ जुड़े विवादों ने! इसके विरोध को देखकर फिल्म के दर्शकों ने यह भी सोचा कि आखिर विरोध करने वालों ने टीजर में ऐसा क्या देख लिया कि सड़क पर उतर आए! फिल्म के बॉयकॉट की मांग उठने लगी थी, पर जो हुआ वो अद्भुत ही कहा जाएगा। वास्तव में ये वो चमत्कार है, जो बार-बार नहीं होते! कम से कम शाहरुख़ से दर्शकों ने ऐसे किसी धमाके की उम्मीद शायद नहीं की होगी। नायिका के सामने हाथ फैलाकर अपने रोमांस का इजहार करने वाला नायक हाथ में सिक्स पैक एप दिखाकर मशीनगन चलाता दिखाई दे और दर्शक उसे हाथों- हाथ ले तो इसे दर्शकों की नई पसंद जाएगा। वो भी विरोध के माहौल के बीच!

विरोध के बाद भी फिल्म के चल निकलने का ये पहला उदाहरण नहीं है। पहले भी दर्शकों ने कई फिल्मों को नकारात्मक पब्लिसिटी के बावजूद पसंद किया है। पर ‘पठान’ उनमें अव्वल रही। आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ को लेकर भी रिलीज के समय विरोध उपजा था।


2014 में आई इस फिल्म का भी कई कारणों से विरोध हुआ था। विरोध झेलने वाली फिल्मों में संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावत’ भी थी। मलिक मुहम्मद जायसी की कहानी ‘पद्मावती’ पर बनी इस फिल्म के खिलाफ भी आवाज उठी थी। इस लिस्ट में ‘पठान’ तीसरी फिल्म है, जिसने विरोध की आग में झुलसकर सफलता का स्वाद चखा। इससे साबित होता है, कि विरोध हमेशा सार्थक नतीजा नहीं देता।

कई बार ऐसा विरोध फिल्म को मुफ्त की पब्लिसिटी भी देता है। फिल्म को लेकर जो उत्सुकता जागी, उसका कारण निगेटिव पब्लिसिटी ही कहा जा सकता है।
शाहरुख़ खान को फिल्म इंडस्ट्री का संकट मोचक कहा जाता है। 80 के दशक में जब वीडियो कैसेट के आने के बाद फिल्म इंडस्ट्री बर्बाद होने वाली थी, तब शाहरुख़ ही ऐसे कलाकार थे जिन्होंने इंडस्ट्री को उबारा। उसी शाहरुख़ ने एक बार फिर इंडस्ट्री को संकट से निकाला। कोविड काल के बाद मनोरंजन के इस माध्यम की जो हालत हुई, वो किसी से छुपी नहीं है। कई थिएटर बंद हो गए, कलाकारों के पास काम नहीं बचा, फिल्मों का स्तर गिर गया। साउथ की रीमेक का सहारा लेकर फिल्में बनने लगी। ऐसे में लोगों ने ‘बायकॉट बॉलीवुड’ ट्रेंड शुरू कर दिया। ऐसे माहौल में एक बार फिर शाहरुख खान ने बॉलीवुड की नैया पार लगाई। ‘पठान’ जैसी सुपरहिट फिल्म देकर दर्शकों को जता दिया कि हिंदी सिनेमा अभी मरा नहीं है।

 

देश के 25 सिंगल स्क्रीन थिएटर जो कोरोना के बाद बंद हो गए थे, उनमें फिर रौनक लौट आई।
बीते दो साल फिल्मों के लिए बहुत खराब गुजरे। कोरोना के चलते लगातार दो साल तक सिनेमाघरों पर ताले पड़े रहे, जिसके चलते फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर व्यक्ति ने पीड़ा झेली। उसके बाद फिल्मों के लगातार फ्लॉप होने से तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े होने लगे थे। ऐसे में साऊथ की डब फिल्मों के प्रति दर्शकों की आसक्ति और ओटीटी के मोह ने भी घाटे के साथ हिम्मत भी तोड़ दी थी। इसके बाद फिल्मों के बायकॉट ट्रेंड ने परेशानी बढ़ाई। ऐसे में चारों तरफ मायूसी का माहौल था। क्योंकि, इन इंडस्ट्री का अस्तित्व तभी बचा रहता है जब दर्शकों को फ़िल्में पसंद आए! ऐसे में सभी को किसी चमत्कार की उम्मीद थी। ऐसा चमत्कार जो पिछले सारे दुःख भुला दे और एक नया रास्ता खोल दे और ‘पठान’ ने वही सब किया। नए साल की शुरुआत में शाहरुख खान ने सारे पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए बता दिया कि अभी न तो हिंदी फिल्म का पराभव हुआ है और न शाहरुख़ खान का!
‘पठान’ ने देशभक्ति वाली फिल्मों को मिलने वाली सफलता में एक नया फार्मूला और जोड़ दिया। टाइगर, टाइगर जिंदा, वॉर, तानाजी : द अनसंग वॉरियर और उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक जैसी चरम देशभक्ति की फिल्मों के बाद शाहरुख़ खान ‘पठान’ में पहली बार खुफिया एजेंट के रोल में नजर आए। एक ऐसा कलाकार जिसने परदे पर रोमांस की नई परिभाषा गढ़ी, उसके अचानक एक्शन रोल को दर्शक स्वीकार नहीं करते! पर ‘पठान’ में। शाहरुख़ की रोमांटिक से एक्शन हीरो बनने की तमन्ना भी इस फिल्म से पूरी हो गई। फैंस, जब हैरी मेट सेजल और ‘जीरो’ के बाद शाहरुख खान को फ्लॉप हीरो माना जाने लगा था, उन्होंने इस फिल्म में देशभक्ति का तड़का लगाया और इसका उन्हें फायदा भी मिला।
तीनों खान कलाकारों की पिछली कुछ फिल्मों पर अगर नजर डाली जाए, तो लगता है कि दर्शक इनकी फिल्मों को आंख मूंदकर हिट नहीं कराते। फिल्म की कहानी बकवास हो, तो वे उसे सिरे से खारिज करने में भी गुरेज नहीं करते। सलमान खान की ‘ट्यूबलाइट’ शाहरुख़ की ‘फैंस’ और आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्डा’ ऐसी ही फ़िल्में थी जिन्हें दर्शकों ने सिरे से नकार दिया। शाहरुख की ‘पठान’ की कहानी बहुत अच्छी नहीं है, लचर जरूर है, पर खराब नहीं! लेकिन फिल्म में जबरदस्त एक्शन सीन होने से ये दर्शकों के दिल में उतर गई। फिल्म की एडिटिंग का चुस्त होना फिल्म की सफलता का बड़ा कारण है। ढाई घंटे की इस फिल्म को इसकी एडिटिंग ने दर्शकों को बांधकर रखा। दरअसल, फिल्म की सफलता में उसकी कई अच्छाइयां जुड़ी होती है। इसलिए कहा जा सकता फिल्म अच्छी होगी, तभी चलेगी।
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